पादप विज्ञान (Plant Sciences)

पादप विज्ञान (Plant Sciences) पौधों के जीवन, संरचना, वृद्धि, विकास, प्रजनन और उनके पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में बताता है। यह विज्ञान न केवल प्रकृति के रहस्यों को समझने में मदद करता है, बल्कि कृषि, औषधि, पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। पादप विज्ञान के माध्यम से हम पौधों की उपयोगिता, उनकी पोषण संबंधी क्षमता और पर्यावरण में उनकी भूमिका को गहराई से समझ सकते हैं।


पादप के विभिन्न भाग और उनके कार्य


❖ पादप आकारिकी (Plant Morphology) :-

पादप के विभिन्न भाग जैसे – जड़, तना, पत्ती, पुष्प, फल आदि के आकार व गुणों का अध्ययन।

❖ पादप के विभिन्न भाग / अंग :-

जड़ या मूल (Root)

पौधे का वह भाग जो जमीन के अंदर रहता है।
कार्य:

  • जल एवं खनिज लवण का अवशोषण।
  • पौधे को जमीन पर स्थिर रखना।

जड़ के प्रकार:

  1. मूसला जड़ (Tap Root):
    • यह जड़ें द्विबीजपत्री पौधों में पाई जाती हैं।
    • उदाहरण: नीम, आम, चना, सरसों।
  2. अपस्थानिक जड़ें (Adventitious Root):
    • मूलांकुर के अलावा तना एवं पत्ती से निकलती हैं।
    • एकबीजपत्री पौधों में पाई जाती हैं।
    • उदाहरण: गेहूँ, मक्का।
  3. अन्य जड़ें (Other Roots):
    • शंकु रूपी मूसला जड़ (Conical): गाजर।
    • तर्कु रूपी मूसला जड़ (Fusiform): मूली।
    • ग्रंथिल मूसला जड़ (Nodulated): मटर, मूँगफली।
    • कुम्भीरूपी मूसला जड़ (Napiform): चुकंदर, शलजम।
    • परजीवी मूल: अमरबैल।
    • माइबोराइजल मूल: चीड़।

तना (Stem)

पौधे का वह भाग जो प्रकाश की ओर वृद्धि करता है।
कार्य:

  • जल व खनिज लवणों को जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाना।
  • पत्तियों द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थ को जड़ों तक पहुँचाना।
  • पौधे को यांत्रिक रूप से सहारा देना।

तने के प्रकार:

  1. भूमिगत तना:
    • प्रकन्द (Rhizome): हल्दी, अदरक, केला।
    • आकंद (Tuber): आलू।
    • शल्ककंद (Bulb): प्याज, लहसुन।
    • घनकंद (Corm): अरबी, केसर।
  2. अर्द्धवायवीय तना:
    • घास, चमेली, पोदीना, जलकुंभी, स्ट्रॉबेरी।
  3. वायवीय तना:
    • बबूल, अंगूर की बेल, नींबू, नागफनी, कुकुरबिटेसी।

पत्ती (Leaf)

पर्णहरित की उपस्थिति के कारण हरे रंग की होती है।
कार्य:

  • भोजन निर्माण।
  • गैसों का आदान-प्रदान।
  • श्वसन व वाष्पोत्सर्जन।

पुष्प (Flower)

यह पौधे का जनन अंग है।
कार्य:

  • फल व बीज का निर्माण।

पुष्प के भाग:

  1. बाह्यदलपुंज (Calyx)
  2. दलपुंज (Corolla)
  3. पुमंग (Androecium)
  4. जायांग (Gynoecium)

नोट:

  • एकलिंगी पुष्प (Unisexual): जिसमें एक जनन अंग अनुपस्थित हो।
  • द्विलिंगी पुष्प (Bisexual): जिसमें दोनों जनन अंग उपस्थित हों।

फल (Fruit)

अध्ययन: पोमोलॉजी।
फल का निर्माण:

  • निषेचन के बाद अंडाशय से फल व बीजाण्ड से बीज बनता है।
  • बिना निषेचन बने फल को बीजरहित फल कहते हैं।
    • उदाहरण: केला, अंगूर, अनानास।

फलभित्ति के भाग:

  1. बाह्य फलभित्ति (Epicarp): बाहरी स्तर।
  2. मध्य फलभित्ति (Mesocarp): मध्य स्तर।
  3. अन्तः फलभित्ति (Endocarp): भीतरी स्तर।

फल के प्रकार:

  1. सत्य फल (True Fruit): अंडाशय से बने।
    • उदाहरण: आम, अमरूद।
  2. असत्यकूट फल (False Fruit): अंडाशय के अलावा अन्य भाग से बने।
    • उदाहरण: सेब, काजू, नाशपाती।

बीज (Seed)

बीज का निर्माण बीजाण्ड से होता है।

बीज के भाग:

  1. बीजावरण (Seed Coat):
    • बाहरी आवरण: Testa
    • भीतरी आवरण: Tegmen
  2. भ्रूण (Embryo):
    • मूलांकुर से जड़ का विकास।
    • प्रांकुर से तने का विकास।
  3. भ्रूणपोष (Endosperm):
    • भ्रूण को पोषण प्रदान करता है।
    • उदाहरण: गेहूँ, मक्का, चावल।

बीजपत्र के प्रकार:

  1. एक बीजपत्री (Monocot): एक बीजपत्र।
    • उदाहरण: गेहूँ, मक्का।
  2. द्विबीजपत्री (Dicot): दो बीजपत्र।
    • उदाहरण: चना, मटर।

पौधों व फलों खाने योग्य भाग


पौधों के खाने योग्य भाग

  1. जड़:
    • शलजम, चुकंदर, गाजर, मूली।
  2. तना:
    • हल्दी, अदरक, केसर, आलू, प्याज।
  3. फल:
    • इलायची।
  4. छाल:
    • दालचीनी।
  5. पत्ती:
    • चाय।
  6. बीज:
    • कॉफी।

फलों के खाने योग्य भाग

  1. सेब, नाशपाती: पुष्पासन।
  2. आम, पपीता: मध्य फलभित्ति।
  3. लीची: एरिल।
  4. अमरूद, अंगूर, टमाटर: फलभित्ति और बीजाण्डासन।
  5. नारंगी: जूसी हेयर।
  6. केला: मध्य और अंतःफलभित्ति।
  7. गेहूँ: भ्रूणपोष और भ्रूण।
  8. चना, मूंगफली, काजू: बीजपत्र और भ्रूण।
  9. काजू: पुष्पवृन्त और बीजपत्र।

विभिन्न वर्णक(Pigments) और उनके प्रभाव


  1. टमाटर का लाल रंग: लाइकोपिन।
  2. मिर्च का लाल रंग: कैप्सेंथिन।
  3. हल्दी का पीला रंग: कुर्क्यूमिन।
  4. मूली का तीखापन: आइसोथायोसाइनेट।
  5. आंवले का कसैलापन: टैनिन।
  6. बादाम की कड़वाहट: एमाइलेडिन।
  7. पपीता का पीला रंग: केरिक्जेंथिन।
  8. गाजर का नारंगी रंग: कैरोटीन।
  9. गाजर का लाल रंग: एन्थोसाइनिन।
  10. खीरे की कड़वाहट: कुकुरबिटेसिन।
  11. करेले की कड़वाहट: मेमोर्डिकोसाइट।
  12. प्याज का लाल रंग: एन्थोसाइनिन।
  13. दूध का सफेद रंग: केसीन।
  14. दूध का हल्का पीला रंग: कैरोटीन।
  15. आलू का हरा रंग: सोलेनिन।

प्रकाशसंश्लेषण (Photosynthesis)


पौधों में जल, प्रकाश, पर्णहरित व Co2 की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण की प्रक्रिया।

रासायनिक अभिक्रिया:
6Co2 + 12H2O ⟶ C6H12O6 + O2 + 6H2O

महत्त्व:

  • प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलना।
  • वायुमंडल में Co2 की मात्रा का संतुलन।

प्रभावित करने वाले कारक:

  1. प्रकाश।
  2. तापमान।
  3. Co2 की मात्रा।
  4. जल।

प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक तत्व

  1. प्रकाश (Light):
    • दृश्य प्रकाश में होता है।
    • लाल और नीले रंग में अधिक प्रभावी।
  2. Co2 (कार्बन डाइऑक्साइड):
    • स्थलीय पौधे वायुमंडल से और जलीय पौधे पानी से Co2 ग्रहण करते हैं।
  3. जल (Water):
    • पत्तियों तक जाइलम ऊतक द्वारा पहुंचता है।
    • जल में H2 और Co2 ऑक्सीकृत-अपचयन होती है।
  4. पर्णहरित (Chlorophyll):
    • प्रकाश संश्लेषण का केंद्र।
    • हरितलवक में मैग्नीशियम का परमाणु मौजूद होता है।

प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक

  1. प्रकाश:
    • निम्न तीव्रता पर क्रिया अधिक, उच्च तीव्रता पर कम।
    • पराबैंगनी, हरे, पीले और अवरक्त प्रकाश में नहीं होता।
  2. तापमान:
    • 0°C से 37°C तक बढ़ता है, 37°C के बाद घटता है।
  3. Co2:
    • बढ़ी सान्द्रता का कोई विशेष प्रभाव नहीं।
  4. जल:
    • जल की कमी से दर घट जाती है।

प्रकाश संश्लेषण का महत्त्व

  1. जल और Co2 से जटिल कार्बनिक पदार्थों का निर्माण।
  2. प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलना।
  3. वायुमंडल में Co2 संतुलन बनाए रखना।
  4. मनुष्य और अन्य जीवधारियों के लिए उपयोगी।

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