भारत के शास्त्रीय नृत्य | Classical Dance of India

Classical Dance of India: भारत की ज़मीन कला और संगीत के रंग से सजी है। शास्त्रीय नृत्य सिर्फ़ पैरों की थाप या हाथों के इशारे नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और कलाकारों की मेहनत की कहानियाँ हैं। ये नृत्य धार्मिक, सामाजिक एवं साहित्यिक इतिहास का जीवंत प्रतिबिंब भी प्रस्तुत करते हैं। भारत सरकार ने अब 8 शास्त्रीय नृत्यों को मान्यता दी है।

भारत के शास्त्रीय नृत्यों की सूची (List of Classical Dance Forms of India)

भरतनाट्यम (तमिलनाडु)

  • मंदिरों में देवदासियों के द्वारा प्रारंभ किया गया।
  • 20वीं सदी में रुक्मिणी देवी अरुंडेल एवं ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों से इसे व्यापक मान्यता मिली।
  • मुख्यतः महिलाओं द्वारा प्रदर्शित एक स्त्री नृत्य शैली।
  • इसमें भाव (अभिव्यक्ति), राग (संगीत) और ताल (लय) का अनूठा समागम देखने को मिलता है।
  • प्रमुख कलाकार: रुक्मिणी देवी अरुंडेल, यामिनी कृष्णमूर्ति, पद्मा सुब्रह्मण्यम, सोनल मानसिंह, मृणालिनी साराभाई, वैजयन्ती माला।

कथक (उत्तर भारत)

  • ‘कथा’ (कहानी) से प्रेरणा लेकर विकसित, उद्देश्य भगवान कृष्ण की कथाओं का प्रस्तुतीकरण है।
  • 19वीं शताब्दी में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में इसका स्वर्णिम युग आया।
  • तीन प्रमुख घराने हैं:
    • लखनऊ (भावप्रधान)
    • जयपुर (तकनीकी)
    • बनारस (तालबद्धता)
  • प्रमुख कलाकार: बिरजू महाराज, सितारा देवी, पंडित लच्छू महाराज, सुखदेव महाराज।

कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश)

  • आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के कुचिपुड़ी गाँव से उत्पन्न हुई।
  • इसमें भक्ति भाव और नाटकीयता का सुंदर मिश्रण है, स्त्री और पुरुष दोनों कलाकार भाग लेते हैं।
  • विशेष तकनीकों में सिर पर पानी का मटका रखना और पीतल की थाली पर नृत्य करना शामिल है।
  • प्रमुख कलाकार: राजा-राधा रेड्डी (युगल), यामिनी कृष्णमूर्ति, स्वप्न सुंदरी।

ओडिसी (ओडिशा)

  • भगवान कृष्ण की लीलाओं पर आधारित कथाएँ प्रस्तुत करता है।
  • मंदिरों की मूर्तियों से प्रेरणा लेकर विकसित, इसमें त्रिभंग मुद्रा (शरीर को तीन भागों में मोड़ना) प्रमुख है।
  • 12वीं शताब्दी में कवि जयदेव की ‘गीत गोविंद’ से इसकी नींव पड़ी।
  • पारंपरिक रूप से महारी (मंदिर नर्तकियाँ) और गोटीपुआ (लड़के) द्वारा नृत्य प्रस्तुत किया जाता था।
  • प्रमुख कलाकार: केलुचरण महापात्र, सोनल मानसिंह, संयुक्ता पाणिग्रही, किरण सहगल, शेरोन लेवोन, मिर्ता बारवी।

कथकली (केरल)

  • ‘कथा’ (कहानी) एवं ‘काली’ (कला) के मिलन से विकसित एक अनूठी नृत्य शैली है।
  • इसमें रंगमंच, संगीत और मुखौटों का अद्वितीय संगम होता है, मुख्यतः पुरुष कलाकार इस कला में निपुण होते हैं।
  • रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की कथाओं को प्रस्तुत करता है।
  • भव्य श्रृंगार और हरे-लाल मुखौटे इसकी विशिष्ट पहचान हैं।
  • प्रमुख कलाकार: कृष्णन नायर, शांता राव, उदयशंकर, मृणालिनी साराभाई।

मणिपुरी (मणिपुर)

  • भगवान कृष्ण और राधा की रासलीला से प्रेरणा लेकर विकसित, यह नृत्य कोमलता और भक्ति का प्रतीक है।
  • लाई हरोबा जैसे त्योहारों पर इसका विशेष प्रदर्शन किया जाता है।
  • पुरुष पुंग (ड्रम) की ताल पर, महिलाएँ घूंघट और घाघरा पहनकर नृत्य करती हैं।
  • प्रमुख कलाकार: गुरु अमलीसिंह, गुरु बिपिन सिंह, गुरु अमोबी सिंह।

सत्त्रिया (असम)

  • 15वीं शताब्दी में संत शंकरदेव द्वारा वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए आरंभ किया गया।
  • सन् 2000 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा इसे शास्त्रीय नृत्य की मान्यता प्राप्त हुई।
  • मुख्यतः सत्र (मठ) में इसका अभ्यास होता है।
  • इसमें ‘भाओना’ (नाटक) और ‘झुमुरा’ (शुद्ध नृत्य) के तत्व देखने को मिलते हैं।
  • प्रमुख कलाकार: शंकरदेव, गुरु ज्योति प्रसाद आइर, इंदिरा पी.पी. बोरा।

मोहिनीअट्टम (केरल)

  • भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार से प्रेरणा लेकर विकसित।
  • दासियाट्टम से विकसित होकर 18वीं शताब्दी में त्रावणकोर राजाओं के संरक्षण में आई।
  • नाजुक हाथों के सूक्ष्म इशारे और चेहरे के भावों पर केंद्रित, यह स्त्रीलिंगी ग्रेश (लास्य) का अद्भुत प्रदर्शन है।
  • प्रमुख कलाकार: हेमामालिनी, श्रीदेवी, कनक रेल, कल्याणी अम्मा, भारती शिवाजी, सुनींद्र नायर।

भारतीय शास्त्रीय नृत्य हमारी सभ्यता की जीवंत धरोहर हैं। ये नई पीढ़ी के कलाकारों और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए वैश्विक पहचान बना रहे हैं। यूनेस्को ने भी कथकली और कुचिपुड़ी को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया है।

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